*COD & Shipping Charges may apply on certain items.
Review final details at checkout.
₹106
₹125
15% OFF
Paperback
Out Of Stock
All inclusive*
About The Book
Description
Author
मोमिन ख़ाँ मोमिन की ज़िंदगी और शायरी पर दो चीज़ों ने गहरा प्रभाव डाला। एक इनकी रंगीन मिज़ाजी और दूसरी इनकी धार्मिकता। परन्तु इनकी ज़िंदगी का सबसे रोचक हिस्सा इनके प्रेम-प्रसंगों से ही है। मोहब्बत ज़िंदगी का तक़ाज़ा बनकर बार-बार इनके दिलो-दिमाग़ को प्रभावित करती रही। इनकी शायरी पढ़ कर मालूम होता है कि शायर किसी ख़्याली नहीं बल्कि एक जीती-जागती महबूबा के इश्क़ में गिरफ़्तार है। इनके कुल्लियात (किसी शायर की रचनाओं के संग्रह को कहते हैं।) में छः मसनवीयाँ मिलती हैं और हर मसनवी किसी प्रेम-प्रसंग का वर्णन है। मोमिन की महबूबाओं में से एक थीं- उम्मत-उल-फ़ातिमा जिनका तख़ल्लुस “साहिब जी” था। मौसूफ़ा पूरब की पेशेवर तवायफ़ थीं जो उपचार के लिए दिल्ली आयीं थीं। मोमिन हकीम थे परन्तु उनकी नब्ज़ देखते ही ख़ुद उनके बीमार हो गये। कई प्रेम-प्रसंग मोमिन के अस्थिर प्रवृति का भी पता देते हैं।मोमिन के यहाँ एक प्रकार की बेपरवाही की शान थी। धन-दौलत की चाह में इन्होंने किसी का क़सीदा नहीं लिखा। ये बेपरवाही शायद उस मज़हबी माहौल का प्रभाव हो जिसमें इनकी परवरिश हुई थी। शाह अब्दुल अज़ीज़ के ख़ानदान से इनके ख़ानदान के संबंध थे। मोमिन ने दो शादियाँ कीं पहली बीवी से इनकी नहीं बनी तो दूसरी शादी ख़्वाजा मीर दर्द के ख़ानदान में ख़्वाजा मुहम्मद नसीर की सुपुत्री से हुई। मौत से कुछ वर्ष पहले ये आशिक़ी से अलग हो गये थे। 1851 ई. में ये कोठे से गिर कर बुरी तरह घायल हो गये थे और पाँच-छह माह बाद इनका निधन हो गया।