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About The Book
Description
Author
आज की विषम परिस्थितियों को समझते हुए पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में व्याप्त गरीबी जाहिलीयत अंधविश्वास एवं अन्यायपूर्ण व्यवस्था की विद्रुपता को समझने के लिए एक कोशिश है। मौजूदा समय में सरकार की विभिन्न नीतियों जिसके चलते अमीरी-गरीबी के बीच का खाई लगातार बढ़ता जा रहा है बाजार की शक्तियों के द्वारा लोकतांत्रिक संस्थाओं एवं विभिन्न सरकारी संस्थाओं को अपने गिरफ्त में ले लिया है। सब कुछ बाजार की शक्तियों के आगे नतमस्तक है लोकतंत्र पर बाजारतंत्र हावी है। निजीकरण की नीतियों को थोपा जा रहा है जिससे बेरोजगारी अपने रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। देश की बहुतायत आबादी कृषि पर आश्रित है जो बुरे दौर में है। पिछले एक साल में लिखे विभिन्न लेख जिनमें से कुछ विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं उसे एक पुस्तक के रूप में आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूं। यह प्रयास कैसा लगा पत्र एवं संचार के विभिन्न माध्यमों से अवगत कराने का कष्ट करेंगे।अंत में इसे पुस्तक का रूप देने के लिए प्रेरित करने वाले दर्शन शास्त्र विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो हर्षवर्धन प्रसाद सिंह अनीश अंकूर प्रगतिशील लेखक संघ उपमहासचिव बिहार विश्वजीत कुमार पूर्व राष्ट्रीय महासचिव एआईएसएफ रिभा कुमारी एवं अन्य साथियों को आभार व्यक्त करते हैं।