गत एक सहस्राब्दी से भारत जिहाद की चपेट में है। कश्मीर विशेषतया। इस्लामी आतंकवाद के कारण हमारे जिनोसाइड अर्थात् संहार से सब परिचित हैं ।इस्लामी आतंकवाद और राज्य इनका नाभिनाल का सम्बन्ध रहा है। अब १९९० से सीधे चलें हम २००८ में कुछ क्षण । २००८ में श्री अमरनाथ भूमि आंदोलन एक अद्भुत और विद्रूप दोनों प्रकार का रूप लिए था। गुलाम नबी आज़ाद मुख्यमंत्री था। अमरनाथ श्राइन बोर्ड को जो यात्रा के लिए कुछ सौ एकड़ भूमि मिली थी ताकि बोर्ड को यात्रा के लिए प्रबंधन करने में सुविधा हो। यह भूमि परम अनुपजाऊ क्योंकि यहाँ लगभग सात माह तक भूमि हिमाच्छादित रहती है यह भूमि वन विभाग के अधीन है। पर इस भूमि को न देने के लिए कश्मीर में गीलानी ने आंदोलन का आह्वान किया जिसमें भयानक घी महबूबा मुफ़्ती ने डाला। उमर अब्दुल्ला ने संसद में अपने वक्तव्य से कमाल ही कर दिया। राजपाल के रूप में एन. एन. वेहरा आया उसने वही किया जो उसे महबूबा गीलानी और उमर ने करने को कहा। जो एक भयावह जिहादी करता। अर्थात एक आदेश निकाल कर भूमि वापस ली।संसद में सोनिया मनमोहन ने ख़ुशी मे मेज़ें थपथपाई जब उमर अब्दुल्ला ने कहा कि “ मैं मुसलमान हूँ पर फ़िरक़ापरस्त नहीं हूँ अमरनाथ श्राइन बोर्ड को एक इंच ज़मीन नहीं दूँगा ।” यह भयावह अपमान था हिंदुओं का जिसने जम्मू के हिंदुओं के दिल तोड़े। एक महान हिंदू कुलदीप डोगरा ने इस स्वाभिमान की मार को झेल न सकने पर विषपान किया। वह विष न पीता सम्भवतः यदि सशस्त्र होता। यदि उसे अपने धर्म में सशक्त ईको सिस्टम की कोई प्रतिभूति होती। जैसी कि जिहादी को है। ईकोसिस्टम भी शस्त्र भी।आधुनिकतम।
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