UNSE SAWAL PUCHHO! (Poems)

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लोकतंत�र के प�रति अनास�था का भाव हिन�दी कविता के लि� नया विषय नहीं है। आजादी के बाद हमारे नेतृत�व ने जिस लोकतंत�र की कल�पना की थी। वह संभव नहीं हो पाया। समाज में प�राने जमीदारी और पू�जीपति ही नये य�ग में जनप�रतिनिधि बनकर आ गये। सत�ता बदल गयी मगर शोषक वही रहे। यह स�वर वर�ष साठ और सत�तर के दशक में बह�त प�रभावी रहा है। इसलि� साठोत�तरी कविता को मोहभंग की कविता कहा गया था। अब अवारा प�ूजी और लोकतंत�र मिलकर देश चला रहे हैं। इस लोकतंत�र में �क �सा वर�ग पैदा कर दिया है। जो सांसद विधायक बनकर बड़ा पद हथियाकर भय और लूट का साम�राज�य चला रहे हैं। स�नील ने इसी वर�ग का संकेत अपनी कविता जेबकतरे में किया है। नमक मजदूरों पर जंगल की बिटिया जैसी बह�त सी कविताओं में स�नील समाज के शोषण और लूट का बारम�बार जिक�र करते हैं।- उमा शंकर परमार
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