यह एक बच्चे की नासमझी है एक नौजवान की आँखों देखी है और एक बुज़ुर्ग की ज़िंदगी है… --- ‘ऊपरवाले की लाठी’ मेरे जीवन का पहला लघु उपन्यास है जो आपसे अंत तक पहुँचने के लिए सब्र की माँग रखता है। आप इसमें स्वेच्छा से डूबें और इसे अपनी समझ से समझें यही आशा है। यह एक दिन की घटना है जो एक सत्तर साल के बूढ़े के साथ घटती है। यूँ तो उसके हज़ारों दिन एक ही जैसे बीतते आये हैं; मगर वह क्या ख़ास बात होती है जो उस दिन को उन हज़ारों दिनों से ज़्यादा ख़ास बना देती है कि वह एक दिन पूरी बीती उम्र की तरह लगने लगता है—कहानी इसी विषय पर आधारित है।
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