UPNISHAD KAVYA POETIC DESCRIPTION OF UPNISHAD भारतीय मानसऔर जीवन मे घुलेविश्वासों प्रश्नों और उनकेउत्तर वैदिक साहित्य के अनन्य अंग उपनिषदों के वर्ण्य विषय हैं।चार महत्वपूर्ण उपनिषदों के भीतर उपरोक्त दृष्टि से झाँकने का प्रयत्न। लेखिका : श्रीमती आशा सहाय आत्म कथ्य '' उपनिषद एक काव्ययात्रा'' की यह दूसरी कड़ी प्रस्तुत करते हुए मुझे हर्ष है। उपनिषद जिनमे आदि चिन्तनशील मानव की दृश्य अदृश्य प्रकृति से सम्बद्ध सारी जिज्ञासाएँ समाहित हैं और स्वानुभूत उनके उत्तर भी; ब्रह्मविद्या से सम्बद्ध गुरू-शिष्य संवाद के माध्यम से प्राप्त ज्ञान के रूप में वैदिक साहित्य के अन्यतम अंश हैं। मैने कुछ उपनिषदों के भीतर एक काव्ययात्रा करने की चेष्टा की है। बिल्कुल सीधे मार्ग पर चलनेवाली यह यात्रा उपनिषदों के श्लोकार्थों से जरा भी भटके बिना ही आगे बढ़ी है। न ज्यादा न ही कम। जितना लिखा है बस उतना ही। अपनी ओर से कुछ भी जोड़ने घटाने व साज सज्जा करने की धृष्टता नहीं की है। परिणामतः काव्य सौन्दर्य और उसकी विलक्षणता से इषत् दूर रहकर उसके सहज अर्थ की सहज प्रस्तुति को ही अपना लक्ष्य माना है। इस क्रम में मैं इसे भारतीय सामाजिक और दार्शनिक जीवनशैली के अत्यधिक करीब देखकई बार चमत्कृत हुई हूँ । व्याख्याएँ तो विद्वानों ने बहुत की हैं पर सामान्य पाठक इसे अपनी दृष्टि से देख सकें वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इसका आकलन कर सकें अतः गीता प्रेस की पुस्तक ईशादि नौ उपनिषद को आधार मानकर मैंने उनके सरल अर्थ और भावों के अन्तर में प्रवेश करने की हीचेष्टा की है। तीन उपनिषदों ऐतरेय तैत्तिरीय और श्वेताश्वतरोपनिषद की यह काव्ययात्रा सरल मन पाठकों में इनके प्रति रुचि उत्पन्न कर सकेगी ऐसी आशा है।
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