मशहूर शायर मोमिन ख़ां 'मोमिन' मुगलकाल के आखिरी दौर के शायर थे। इसके अलावा 'मोमिन ' मिर्ज़ा ग़ालिब और जौक़ के समकालीन भी रहे। उन दिनों मोमिन बहादुर शाह ज़फर के मुशायरों में शामिल होने लाल किले भी जाते थे। आज भी मोमिन का नाम अत्यंत भावुक और संवेदनशील शायरों में लिया जाता है। उनका आशिकाना मिज़ाज उनकी शायरी में भी झलकता था। आमतौर पर उनकी पूरी शायरी श्रृंगार रस से भरी हुई है। यही कारण है कि इश्क मोहब्बत की रचनाओं को लिखते समय उपमाओं और अलंकारों के ऐसे मोती पिरोते थे कि रचनाएँ सीधा दिल को छू जाती थी।'मोमिन' की शायरी बहुत उच्च स्तर की हैं। उनकी भाषा में कुछ ऐसे गुण विद्यमान हैं जो उनके प्रत्येक शे'र में दिखाई देते हैं। आज भी उनके कई शे'र मुहावरों में रूप में प्रयोग किए जाते हैं। मोमिन श्रृंगार रस के महारथी शायर थे। इस मामले में आज के दौर में भी कोई उनका सानी नहीं।""मुझे जन्नत में वह सनम न मिलाहश्र और एक बार होना था ।"". About the Author नरेन्द्र गोविन्द बहल उर्दू और हिन्दी कविता में गहन रुचि रखते है जिसके कारण उन्होंने अधिकतर मुशायरों व कवि सम्मेलनों में शिरकत की थी इन्हीं आयोजनों की वजह से उन्हें साहित्य लेखन का भी शौक पैदा हुआ। लेखक की विभिन्न विषयों पर अब तक 60 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। लालकिले में होने वाले कवि सम्मेलन और मुशायरों से कविता-शायरी के प्रति प्रेम बढ़ा और वहीं से उन्होंने उन्हें कविता लिखना भी प्रारंभ कर दिया था। कविता गीत गजल शायरी को समझने के लिए उर्दू के मशहूर शायरों के जीवन के बारे में जानने के लिए उर्द भाषा सीखी।जब लेखक साहिर लुधियानवी कैफ़ी आज़मी जान-ए-सार अख्तर अली सदार जाफरी मजाज नरेश कुमार 'शाद' आदि शायरों से मिले तो उनका पाठकीय दृष्टिकोण बदलने लगा और उन्होंने गालिब फैज़ जफ़र दाग आदि रचनाकारों को भी पढ़ना शुरू किया। इन शायरों को पढ़ते हुए लेखक के मन में एक उत्साह पैदा हुआ कि इन शायरों की पुस्तकें संपादित की जाएं। यह पुस्तक भी इसी उत्साह का नतीजा है।.
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