Urdu Ke Mashhoor Shayar Qateel Shifai Aur Unki Chuninda Shayari - (उर्दू के मशहूर शायर क़तील शिफ़ाई और उनकी चुनिंदा शायरी)

About The Book

र्दू के मशहूर शायर “क़तील” शिफ़ाई की पैदाइश 24 दिसम्बर 1919 को हरीपुर हज़ारा (पाकिस्तान) में हुई थी। कतील शफाई का ख़ानदानी नाम औरंगज़ेब रखाँ है। आपकी परवरिश बहुत ही अच्छे घरेलू माहौल में हुई। आपने शुरूआती तालीम गवर्नमेंट हाई स्कूल हरीपुर हज़ारा में हासिल की। “शिफ़ाई” का शब्द आपने अपने उस्ताद हकीम मौहम्मद “शफ़ा” से जुड़े होने की वजह से जोड़ा। हालाँकि आपकी इस्लाह शागिर्दी का ज़माना बहुत ही कम रहा इसके बावजूद आपने उस्ताद का नाम अपने साथ जोड़ा यह एक अच्छे और ईमानदार शागिर्द की पहचान है। क़तील साहब के वालिद का इंतकाल बचपन ही में हो गया था जिसकी वजह से उन्हें बड़ी मुसीबतों का सामना किया । वालिद के इंतकाल के बाद क़तील साहब ने पढ़ाई छोड़कर स्पोर्ट की दुकान खोली। बाद में बज़ाज़ी का काम शुरू किया और नाकाम होने पर वतन छोड़कर रावलपिण्डी चले गए। जहाँ उन्होंने साठ रुपये माहवार पर “मरी ट्रांसपोर्ट कम्पनी” में नौकरी की। 1946 में “अदबे-तलीफ़” के चौधरी नज़ीर अहमद ने “क़तील” को लाहौर बुलवाया और “अदबे-लतीफ़” का सह-सम्पादक के ओहदे पर रख लिया। लाहौर के साप्ताहिक अख़बार “स्टार” में “क़तील” साहब की पहली ग़ज़ल साया हुई जिसके सम्पादक “क़मर” जलालाबादी थे। जनवरी 1947 में लाहौर के एक फ़िल्म निर्माता ने अपनी फ़िल्म के गाने लिखवाने के लिए क़तील को लाहौर बुला लिया और फिर वह वहीं के हो रहे । उनकी एक किताब “मुतरिबा” पर पाकिस्तान का सबसे बड़ा साहित्यिक पुरस्कार “आदम जी एवार्ड” भी मिला। उन्होंने कई फ़िल्मों के बेहतरीन गीतों पर सोलह एवार्ड हासिल किए। इस दौर में खूब तरक्की करने वाले शायरों में “क़तील” शिफ़ाई का नाम भी शुमार है। साल 2003 की शुरुआत में क़तील शफाई ने इस दुनिया से विदा ले लिया और इस तरह उर्दू की एक बड़ी हस्ती हम सब से दूर हो गयी।-- “फैला है इतना हुस्न कि इस कायनात में इन्सां को बार-बार जनम लेना चाहिए”.About the Authorनरेन्द्र गोविन्द बहल उर्दू और हिन्दी कविता में गहन रुचि रखते है जिसके कारण उन्होंने अधिकतर मुशायरों व कवि सम्मेलनों में शिरकत की थी इन्हीं आयोजनों की वजह से उन्हें साहित्य लेखन का भी शौक पैदा हुआ। लेखक की विभिन्न विषयों पर अब तक 60 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। लालकिले में होने वाले कवि सम्मेलन और मुशायरों से कविता-शायरी के प्रति प्रेम बढ़ा और वहीं से उन्होंने उन्हें कविता लिखना भी प्रारंभ कर दिया था। कविता गीत गजल शायरी को समझने के लिए उर्दू के मशहूर शायरों के जीवन के बारे में जानने के लिए उर्द भाषा सीखी।जब लेखक साहिर लुधियानवी कैफ़ी आज़मी जान-ए-सार अख्तर अली सदार जाफरी मजाज नरेश कुमार 'शाद' आदि शायरों से मिले तो उनका पाठकीय दृष्टिकोण बदलने लगा और उन्होंने गालिब फैज़ जफ़र दाग आदि रचनाकारों को भी पढ़ना शुरू किया। इन शायरों को पढ़ते हुए लेखक के मन में एक उत्साह पैदा हुआ कि इन शायरों की पुस्तकें संपादित की जाएं। यह पुस्तक भी इसी उत्साह का नतीजा है।.
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