Urdu Ke Mashhoor Shayar Zauq Aur Unki Chuninda Shayari

About The Book

मोहम्मद शेख़ इब्राहिम ज़ौक़ उर्दू अदब के एक मशहूर शायर थे। ज़ौक़ आख़िरी मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र के उस्ताद और राजकवि थे। मिर्ज़ा ग़ालिब से उनकी प्रतिद्वंदिता प्रसिद्ध है। ज़ौक़ बेहद नरम मिजाज के थे और उनकी याददाश्त बहुत तेज थी । जितनी विद्याएं और उर्दू फ़ारसी की जितनी कविता-पुस्तकें उन्होंने पढ़ी थीं उन्हें वे अपने मस्तिष्क में इस प्रकार सुरक्षित रखे हुए थे कि हवाला देने के लिए पुस्तकों की ज़रूरत नहीं पड़ती थी अपनी याददाश्त के बल पर हवाले देते चले जाते थे। ग़ालिब के समकालीन शायरों में ज़ौक़ बहुत ऊपर का दर्जा रखते हैं। ज़ौक़ मौसिकी गणित व ज्योतिषी में भी दिलचस्पी रखते थे। उनकी शायरी की खास बात ये है की उन्होंने बोलचाल की ज़बान में शायरी की वो आसान और आम फ़हम ज़बान को इस्तेमाल करते मगर तमाम शेरी-वसाईल का सहारा भी लेते। उनकी शायरी में हलकी हलकी मौसिकी और नर्म लहजा मिलता है। ज़ौक़ एक सादगी पसंद इंसान थे उनका जीवन मुग़ल दरबार में महाकवि होने के बावजूद भी मुफ़लिसी में बीता। वो ताउम्र एक छोटे से कमरे के मकान में रहते रहे। उनके दिल का दर्द उनकी शायरी में भी दिखता है- कितने मुफ़लिस हो गए कितने तवंगर हो गए ख़ाक में जब मिल गए दोनों बराबर हो गए। लों का बयां लिखिए!!
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