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About The Book
Description
Author
This combo product is bundled in India but the publishing origin of this title may vary.Publication date of this bundle is the creation date of this bundle; the actual publication date of child items may vary.साहिर लुधियानवी प्रसिद्ध शायर और गीतकार थे। साहिर एक ऐसी शख्सियत हैं जिन्हें अगर कलम का शहंशाह कहा जाए तो अतिशयोक्ति न होगी। साहित्य जगत में साहिर का नाम है जिनके लिखे गीत आज भी लोगों के होठों पर बढ़-चढ़कर थिरकते हैं क्योंकि उनके शब्दों के मोहपाश से कोई भी खुद को अलग नहीं कर पाता है।हिंदी फिल्मों के लिए लिखे उनके गानों में भी उनका व्यक्तित्व झलकता है। उनके गीतों में संजीदगी कुछ इस तरह झलकती है जैसे ये उनके जीवन से जुड़े हों।वक्त के कागज़ पर अपने जमाने की दास्तान लिखने वाले साहिर ने ताउम्र अपनी तमाम रचनाओं में आधी आबादी के पूरे हक और इज्जत की नुमाइंदगी की। स्त्रियों को लेकर उनकी रचना दृष्टि का फलक बहुत ही व्यापक दिखाई देता है। अपने गानों में कभी वे अपनी महबूबा के जमाल को लफ्जों से बांधते नजर आते हैं कभी ‘मेरे घर आई एक नन्ही परी लिख कर उस नन्ही बच्ची की सम्मोहक किलकारियां उकेरते हैं तो कभी चकला और औरत जैसी नज्म में उन औरतों की चीखे ढालते हैं जिन्हें समाज की पिछड़ी निगाहें सिर्फ देह के दायरों में बंधा देखने में अभिशप्त है।दुनिया ने तजुर्बात-ओ-हवादिस की शकल मेंजो कुछ मुझे दिया है वोह लौटा रहा हूँ मैं.कील बदायूंनी की पैदाइश 20 अगस्त 1916 ई० को मौलवी जमील अहमद साहब कादरी के घर बदायूं में हुई। आपके वालिद भी शायर थे और उस जमाने में ‘सोखता’ तखल्लुस फरमाते थे। ‘शकील’ साहब ने शुरूआती तालीम जिसमें उर्दू फारसी अरबी और अंग्रेजी जबान शामिल है मौलवी अब्दुल ग़फ़्फ़ार मौलवी अब्दुल रहमान और बाबू रामचन्द्र जी से हासिल की। इसके बाद शकील ने 1937 ई० में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में दाखिला ले लिया और वहीं से 1942 ई० में बी.ए. का इम्तेहान पास किया और दिल्ली में मुलाजिमत शुरू की। मुशायरों में शकील का नाम मशहूर हस्तियों के तर्ज पर लिया जाता था। दिलकश कलाम और जादू जगाती आवाज़ से सुनने वालों को बेखुद करके खूब तारीफ़ बटोरा करते थे। फिल्मी दुनिया में एक गीतकार की हैसियत से आप अजीम तरीन शख्सियत में शुमार थे। उनकी शोहरत का सितारा तब चमका जब उर्दू भाषा व शायरी पर पतन के बादल मण्डरा रहे थे। ऐसे ही ऩाजुक वक्त में ‘शकील’ ने अपनी बेहतरीन शायरी दिल की गहराईयों में उतर जाने वाले नगमों का जादू जगाकर हर वर्ग के लोगों के दिलों पर राज करने लगे।.About the Authorनरेन्द्र गोविन्द बहल उर्दू और हिन्दी कविता में गहन रुचि रखते है जिसके कारण उन्होंने अधिकतर मुशायरों व कवि सम्मेलनों में शिरकत की थी इन्हीं आयोजनों की वजह से उन्हें साहित्य लेखन का भी शौक पैदा हुआ। लेखक की विभिन्न विषयों पर अब तक 60 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। लालकिले में होने वाले कवि सम्मेलन और मुशायरों से कविता-शायरी के प्रति प्रेम बढ़ा और वहीं से उन्होंने उन्हें कविता लिखना भी प्रारंभ कर दिया था। कविता गीत गजल शायरी को समझने के लिए उर्दू के मशहूर शायरों के जीवन के बारे में जानने के लिए उर्द भाषा सीखी।जब लेखक साहिर लुधियानवी कैफ़ी आज़मी जान-ए-सार अख्तर अली सदार जाफरी मजाज नरेश कुमार शाद आदि शायरों से मिले तो उनका पाठकीय दृष्टिकोण बदलने लगा और उन्होंने गालिब फैज़ जफ़र दाग आदि रचनाकारों को भी पढ़ना शुरू किया। इन शायरों को पढ़ते हुए लेखक के मन में एक उत्साह पैदा हुआ कि इन शायरों की पुस्तकें संपादित की जाएं। यह पुस्तक भी इसी उत्साह का नतीजा है।.मजाज़ उर्दू के प्रगतिशील विचारधारा से जुड़े रोमानी शायर के रूप में मशहूर हुए। लखनऊ शहर से जुड़े होने की वजह से मजाज़ लखनवी नाम से भी मशहूर हुए। लेखन के शुरुआती दौर में उपेक्षा होने के बावजूद कम लिखकर भी उन्होंने बहुत ज्यादा प्रसिद्धि पाई।मजाज़ की शायरी के दो रंग थे। पहले रंग में वे इश्किया गजलकार नजर आते हैं जबकि दूसरे रंग में उनके इंकलाबी शायर होने की झलक मिलती है। प्रगतिशील विचारधारा से जुड़ने के बाद उनकी शायरी व उनके लेखन को नया विस्तार मिला। वे प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़ गए थे। स्वभाव से रोमानी शायर होने के बावजूद उनकी शायरी में प्रगतिशीलता के तत्व मौजूद रहे। अपनी शायरी में उपयुक्त शब्दों का चयन और भाषा की रवानगी ने उनकी शायरी को लोकप्रिय बनाने की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । हालाँकि उन्होंने बहुत कम लिखा लेकिन जो भी लिखा इससे उन्हें काफी प्रसिद्धि मिली।इसमें कोई दो राय नहीं मजाज़ की मूल चेतना रोमानी है। मजाज़ ने अपने काव्य में प्रेम की हसरतों और नाकामियों का बड़ा व्यथापूर्ण चित्रण किया है। शुरुआत में उनकी रचनाओं के पीछे भी एक रोमानी चेतना की झलक मिलती थी लेकिन धीरे-धीरे विचारधारा का विकास होने के बाद और मजाज़ ने अपने दौर की आशाओं आकांक्षाओं सपनों तथा व्यथाओं की वाणी बने। उन्होंने गरीबी भेदभाव और पूंजीवाद के अभिशाप पर बड़ी क्रांतिकारी रचनाएँ की ।खूब पहचान लो असरार हूँ मैंजिन्से-उल्फ़त का तलबगार हूँ मैं