पूजा भाटिया की शायरी को किसी एक खाँचे में रखना मुश्किल है कि उनके यहाँ मंज़रकशी भी है तो अजीबो-ग़रीब ऐब्सट्रैक्ट भी आते हैं।रवायती अलामतें भी हैं लेकिन उन्हें बरता एकदम नए तरीक़े से गया है। मुहब्बत है लेकिन उसमें एक अजीब-सी एक आज़ाद लड़की की शोख़ी है।कुछ शे’र तो ऐसे हैं कि उनकी दूसरी मिसाल ढूँढने में मुश्किल आती है।“हम अपने दिल की दुनिया में हैं लेकिनयहाँ भी जी नहीं लगता हमारा”तख़्ययुल के नएपन को लफ़्ज़ों की कारीगरी पर लगातार तरजीह देती नज़र आती है उनकी शायरी और इसलिए ज़ियादातर मौक़ों पर वो अपनी बात बेहद आसान तरीक़े से कहने में कामयाब हुई हैं।—स्वप्निल तिवारी
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