सुबह जब वह आयी तो मैंने देखा— आज उसने झुमके पहने थे।वे झुमके हवा में थोड़े-से हिले जैसे कुछ कहने की कोशिश कर रहे हों। उन झुमकों से छनकर आई रोशनी उसके चेहरे पर पड़ रही थी और मुझे लगा कि यह रोशनी किसी और ही दुनिया की है। वह बहुत सुंदर लग रही थी — इतनी कि कोई फूल भी पास आकर चुपचाप देखे और लौट जाए। मैं कहना चाहता था… बहुत कुछ। पर शब्द मेरी जेब में सिक्कों की तरह खनखनाते रहे निकले नहीं।
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