Uthate Huye

About The Book

आज जब नकली प्रगतिशीलता वाम आवरण में वैचारिक वंचनाओं के चलते तमाम किस्म की नारेबाजी और थोथी पोस्टरबाजी में रम गयी है। ऐसे समय में गायत्री की कविताएँ चिन्तन को नया सुकून देती हैं। गायत्री समय की दुरूहता का रेखांकन करते हुए भी कहीं सपाटबयानी का शिकार नहीं होती है। वह सान्द्र भावप्रवणता की सफल कवयित्री हैं। गायत्री की लोकोन्मुखता इतनी प्रभावी और आशावादी है कि वह प्रकृति के बिम्बों को भी सामाजिक मुठभेड़ों के बिम्ब में तब्दील कर देती है। वह स्त्री के सामाजिक जीवन और उसके प्रति संवेदनहीन मानवीय रिश्तों की पहचान रखती है जो आज की महानगरीय कवयत्रियों की बनावटी-सजावटी कविताओं से भिन्न और वास्तविक आस्वाद देती हैं। गायत्री की अस्मितामूलक स्त्रीवादी कविताओं का यह नया अन्दाज़ स्त्री विमर्श की घिसी-पिटी भाषा के विरुद्ध एक नया विकल्प है। उनकी कविता स्त्री-लेखन की कुलीनता का खण्डन है। वह परम्परागत रूढ़ संवेदनाओं का खण्डन करती हुई लोकनिष्ठ भाषा का व्यापक सामाजिक सन्दर्भ तय करती हैं। निश्चित तौर पर गायत्री का यह पहला कविता संग्रह स्त्रीवादी कुलीनता के खिलाफ जनवादी प्रतिरोध का नया उदाहरण बनकर समकालीन कविता में एक नयी नजीर बनेगा। - उमाशंकर सिंह परमार
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