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About The Book
Description
Author
भारत का समूचा इतिहास वाचिक औरश्रवण-परंपरा में निहित है। वेदों कोअपौरुषेय माना गया है । युगों-युगों से हमारे देशमें लेखन की परंपरा न के बराबर थी । वक्ता और श्रोता के माध्यम से ज्ञान का संप्रेषण होता था। बहुत बाद में मौखिक रूप से आत्मसात् किएवेद/पुराण/उपनिषद् आदि के ज्ञान को भोजपत्रोंपर उकेरा गया। कहने का तात्पर्य यह कि चाहे काव्य विधा हो अथवा उसके बाद विकसित कथा या कहानी-परंपरा लोक में अपने पूर्वजों अथवा पहली पीढ़ी से ग्रहण करके दूसरी पीढ़ी ने ज्ञान की इस विरासत को कथा-कहानी के माध्यम से ही आगे बढ़ाया जिसे दृष्टांतकिंवदंती अथवा लोक आख्यान का नाम दियागया।इस संग्रह में कुल पैंतीस लोककथाएँ हैंजिनकी भावभूमि देहाती जीवन के मनोविकार आदमी की सोच उसकी जीवनचर्या तथा भावोंव विचारों के संघर्ष को प्रतिध्वनित कराती हैं । इन कहानियों में हिमालयी क्षेत्र के सुरम्य शांतव मनोरम प्राकृतिक वातावरण के साथ पहाड़ के आदर्श माने जाने वाले जीवन-मूल्यों का भीसमावेश है । देवभूमि उत्तराखंड के लोक-जीवन की झलक दिखातीं और लोक-परंपराओं वमान्यताओं का दिग्दर्शन करवाती ये लोककथाएँ पाठकों को वहाँ के जनजीवन से परिचित करवाएँगी।