ये वही दौर है जब आज के बचपन को कुछ करने या पढ़ने के लिए कहा जाता है तो एक आक्रोश उन आंखों में नजर आता है और कुछ कहने मात्र से विरोध भी। बेशक आज हम लाड प्यार में इस बचपन को अनदेखा करते जा रहे हैं परन्तु एक दिन जब हमें या देश को इनकी जरूरत होगी तो ये बचपन उस वक्त उम्मीदों पर खरा नहीं उतर सकेगा। बचपन की कोमलता को ध्यान में रखते हुए इसका निदान आज ही करना होगा। आज बचपन से खिलवाड़ करने की सबसे बड़ी शक्ति सोशल मीडिया प्लेटर्फोम को माना जा रहा है जो विभिन्न प्रकार की लगातार चलने वाली सामग्रियों से लैस है जिसमें गेमिंग आपत्तिजनक सामग्री तथा बचपन को उम्र से पहले व्यस्कता के आवरण में ढालने वाली विषय वस्तु भरपूर मात्रा में उपलब्ध है जिसका शिकार आज का बचपन बड़ी मासूमियत से होता जा रहा है। किताबों के प्रति घटता मोह परम्परागत रीति रिवाजों की अनदेखी तथा बड़ों का छोटों के प्रति नकारात्मक रवैया। इस तरह से बचपन को लील लिया जा रहा है।
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