गहरी राजनैतिक सामाजिक पक्षधरता का गद्य होते हुए भी चन्दन का ‘वैधानिक गल्प’ तीव्र आन्तरिक भावनाओं और संवेदनाओं का साथ नहीं छोड़ता। इस मुश्किल जगह से रचे जाने के बावजूद कमाल यह भी है कि यह गल्प के पारम्परिक तत्त्वों जैसे–रहस्य रोचकता और अंतत: पठनीयता को बचाए रखता है। प्यार क्रूरता और प्रतिरोध चन्दन के यहाँ अपने सूक्ष्म और समकालीन रूपों में प्रकट होते हैं जो न सिर्फ़ चकित करता है बल्कि पाठक की चेतना में कुछ सकारात्मक जोड़ जाता है। —महेश वर्मा चन्दन पाण्डेय की लेखकी को समकाल के पूर्ण साहित्यिक विनियोग के रूप में देखा-रखा जा सकता है। चन्दन का कथाकार क़िस्से में ग़ाफ़िल नहीं बल्कि सतर्क व अचूक है जिससे समकाल के अद्यतन संस्करण का भी प्रवेश उनके कथादेश में सहज ही सम्भव है। कहन की साहिबी उन्हें ईर्ष्या का पात्र बनाती है। —कुणाल सिंह एक रात राजधानी दिल्ली के एक लेखक को वर्षों पुरानी किसी महिला मित्र का फ़ोन आता है। वह बताती है कि उसका पति कुछ दिनों से घर नहीं लौटा और यह भी बताती है कि उसकी कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है। अनमनेपन में डूबकर लेखक उस क़स्बे की यात्रा करता है। वहाँ पहुँचकर पाता है कि लापता होने वालों के क्रम में मित्र का पति ही पहला व्यक्ति है। हर ग़ायब होने वाले की दो-दो हक़ीक़त हैं। पहली हक़ीक़त सबकी अलग-अलग है विधिसम्मत दायरों में मान्य है। समाज का हर सांस्थानिक तबक़ा नागरिकता की परिभाषा में वर्णित वैधानिक गल्प को सच साबित करने पर तुला है। लेकिन दूसरी हक़ीक़त भी है जिसमें किसी की दिलचस्पी नहीं सिवाय उनके जो संस्थाओं की मरीचिका में रहते हुए भी प्यार करने का माद्दा रखते हैं। क्या है वो? उत्तर प्रदेश और बिहार के सीमाने पर एक क़स्बा। क़स्बे का रंगमंच। मंच से लापता होते लोग।.
Piracy-free
Assured Quality
Secure Transactions
Delivery Options
Please enter pincode to check delivery time.
*COD & Shipping Charges may apply on certain items.