वैराग्य शतकम् में भर्तृहरि ने कारुण्य और निराकुलता के साथ संसार की नश्वरता और वैराग्य की आवश्यकता पर बल दिया है। संसार एक विचित्र पहेली है-कही वीणा का सुमधुर संगीत है कही सुन्दर रमणीयाँ दिख पड़ती हैं तो कहीं कुष्ठ पीडि़त शरीरों के बहते घाव तो कहीं प्रिय के खोने पर बिलखते स्वजन अतः पता नहीं यह संसार अमृतमय है या विषमय वरदान है या अभिशाप। वैराग्य शतकम् में भर्तृहरि क्या कहते हैं बुद्धिमान लोग ईर्ष्या ग्रस्त हैं राजा अथवा धनी लोग धन के मद में मत्त हैं अन्य लोग अज्ञान से दबे हुये हैं अतः सुभाषित (उत्तम काव्य) शरीर में ही जीर्ण हो जाते हैं।. About the Author भर्तृहरि संस्कृत मुक्तककाव्य परम्परा के अग्रणी कवि हैं। भारतीय साहित्य के इतिहास में भर्तृहरि एक नीतिकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। इनके शतकत्रय की उपदेशात्मक कहानियाँ भारतीय जनमानस को विशेष रूप से प्रभावित करती हैं। प्रत्येक शतक में सौ-सौ श्लोक हैं। बाद में इन्होंने गुरु गोरखनाथ के शिष्य बनकर वैराग्य धारण कर लिया था इसलिए इनका एक लोकप्रचलित नाम बाबा भरथरी भी है।.