वल्लभाचार्य द्वारा प्रवर्तित संप्रदाय पुष्टिमार्ग के मुख्यतः दो आचार्यों वल्लभाचार्य और उनके द्वितीय पुत्र विट्ठलनाथ जी और उनके सेवकों के गुणगान के लिए रचित चौरासी वैष्णवन की वार्ता दो सौ वावन वैष्णवन की वार्ता आदि ग्रन्थ गोकुल नाथ जी द्वारा रचित बताये जाते हैं। उनके परिवर्तित तथा परिवर्धित रूप भावप्रकाश नामक व्याख्या के साथ लीला भावना वाली प्रतियों में मिलते हैं। हिंदी साहित्य के विद्वानों ने (दो चार को छोड़कर) इन्हें इतिहास ग्रन्थ की मर्यादा दी है और प्रमाणिक मानकर इनका उपयोग किया है। इस ग्रन्थ में इस पर विचार किया गया है कि ऐसा करना कहाँ तक तर्कसंगत और इतिहास की दृष्टि से कितना प्रमाण पुष्ट है। सच्चाई को जानने के लिए यह ग्रन्थ अवश्य पढ़ें।
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