कुछ समय पहले तक हमारे पूर्वज वजन तोलने के लिए ज़रूरी सेर छटांक तोला मासा जैसी तथा लंबाई नापने के लिए कोस मील गज़ इन्च जैसी छोटी-बड़ी माप से जुड़ी सूक्ष्म से स्थूल गणनाओं को मौखिक हल कर लेते थे। लेकिन आज किलोमीटर मीटर या किलोग्राम ग्राम जैसी सरल दाशमिक पद्यति की किसी भी तरह की माप सम्बन्धी गणना करने या फिर कुछ संख्याओं को आपस में जोड़ने घटाने गुणा या भाग करने की जब भी आवश्यकता होती है तो बड़ों से लेकर बच्चों की आँखें कैलकुलेटर या मोबाइल को तलाशती हुई दिखाई देती हैं। आर्यभट्ट वाराहमिहिर भास्कर श्रीधर ब्रह्मगुप्त आदि जैसे महान भारतीय ऋषियों गणितज्ञों और ज्योतिषियों ने गणित की संक्रियाओं को हल करने के बहुत ही सरल समाधान दिये हैं जिनकी उपयोगिता आधुनिक गणित की प्रत्येक शाखा में आज भी प्रासंगिक है। जगद्गुरु शंकराचार्य भारती कृष्णतीर्थ जी ने तो २०वीं सदी के प्रारम्भ में इस जगत को १६ सूत्र और १३ उपसूत्तों की वैदिक गणित नामक एक ऐसी अद्वितीय कृति दी है कि यदि कक्षा आठ तक का एक विद्यार्थी इसे क्रमबद्ध रूप में समझ ले तो निश्चित ही उसकी स्मरण सामर्थ्य और गणना करने की क्षमता एक कैलकुलेटर से कहीं अधिक होगी।
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