कविवर राजेंद्र निगम राज की तीसरी पुस्तक जब मुझे शुभकामनाएं प्रेषित करने हेतु प्राप्त हुई तो इसका शीर्षक देखकर बड़ी हैरानगी हुई कि “बैनीआहपीनाला” भला यह कैसा शीर्षक है किंतु जब पुस्तक की रचनाओं का प्रस्तुतिकरण देखा तो सब कुछ समझ में आ गया। भावभरी ये सभी रचनाएं जीवन के विविध रंगों से परिपूर्ण हैं जिन्हें सात काव्य विधाओं में वर्गीकृत करके रचनाकार द्वारा इंद्रधनुष का आकर दिया गया है। जिज्ञासा जागी कि आखिर इंद्रधनुष का अर्थ क्या है? मन ही मन ध्यान लगाने के पश्चात समझ में आया कि आकाश के निर्मल पटल पर किन्हीं अदृश्य हाथों द्वारा उकेरी गई कल्पनातीत सतरंगी अल्पना ही इंद्रधनुष है। मन के आकाश पर जब यही कल्पना उतरती है तो यह प्रस्तुत पुस्तक के रूप में इंद्रधनुषी आभा के साथ झिलमिलाने लगती है।<br>-रमेश चंद्र शर्मा
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