Vicharo Ki Bediya Jab Tuti
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About The Book

विचारों की बेड़ियाँ जब टूटी इस पुस्तक के माध्यम से विभिन्न उदाहरणों के द्वारा सोच पर लगी बेड़ियों को उजागर किया गया है कि कैसे पितृसत्तात्मक समाज में विचारों के नियमों रिवाजों और सांस्कृतिक लोकाचार को रंगीन शब्दों से सजा दिया गया। इनके चलते विभिन्न प्रथा प्रथा न रहकर समाज में कुरीतियां पैदा कर दी और फिर ये अपराध की श्रेणी में गिने जाने लगे। और जब ये बेड़ियाँ टूटी तो सोच धीरे - धीरे कैसे विकसित हुई? एक लड़की को इतना अन्याय सहन करने के बाद भी उसने साहित्य को अपना व्यवसाय चुना और उस क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने के साथ कैसे अपने गांव के परिदृश्य को बदला और हर लड़की को आगे बढ़ने के लिए निरंतर सहयोग दिया। इसी पश्चात उनकी जिंदगी जंजीरों से मुक्त होकर एक उज्वल भविष्य की ओर बढ़ चलीं और समय के साथ हर व्यवसाय को भी समाज में दर्जा मिला।
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