इस कथानक ने अपने मार्ग में आए झंझावातों से लड़ना तो स्वीकार किया था परंतु उसने कभी अपनी हार नहीं मानी थी। मेरी रचनाओं में सामाजिक घटनाओं समाज की परंपराओं और समाज की रूढ़ियों पर कुठाराघात तथा उससे समाज में होने वाले संभावित प्रभाव का चित्रण ही ज्यादा मिलती है। मनुष्य का सामाजिक जीवन ही सर्वोपरि है क्योंकि उसे जन्म से लेकर अपने जीवन पर्यंत किसी न किसी समाज का हिस्सा बन कर ही रहना पड़ता है और वह समाज में घटती दैनिक घटनाओं से प्रभावित हुए बिना रह भी तो नहीं सकता है। इसी लिए तो मनुष्य को सामाजिक प्राणी कहा जाता है।
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