Vidur Niti (विदुर नीति)


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About The Book

महाभारत की कथा के महत्वपूर्ण पात्र विदुर कौरव-वंश की गाथा में अपना विशेष स्थान रखते हैं। विदुर-नीति जीवन-युद्ध की नीति ही नहीं जीवन-प्रेम जीवन-व्यवहार की नीति के रूप में अपना विशेष स्थान रखती है। राज्य-व्यवस्था व्यवहार और दिशा निर्देशक सिद्धांत वाक्यों को विस्तार से प्रस्तावना करने वाली नीतियों में जहां चाणक्य नीति का नामोल्लेख होता है वहां सत्-असत् का स्पष्ट निर्देश और विवेचन की दृष्टि से विदुर नीति का विशेष महत्व है। व्यक्ति वैयक्तिक अपेक्षाओं से जुड़कर अनेक बार नितान्त व्यक्तिगत एकेंद्रिय और स्वार्थी हो जाता है वहीं वह वैयक्तिक अपेक्षाओं के दायरे से बाहर आकर एक को अनेक के साथ जोड़कर सत्-असत् का विचार करते हुए समष्टिगत भाव से समाज केंद्रिक या बहुकेंद्रिक होकर परार्थी हो जाता है। स्व का पर में विस्तार ही सत्य में मनुष्य धर्म का प्रमुखतः अपेक्षित पक्ष होता है। चाणक्य ने इसे स्पष्टतया समाज धर्म के आलोक में देख-परख कर प्रस्तुत किया है और विदुर ने अपने समय के संदर्भ में न्यायसंगत पक्षधरता के साथ निर्भय होकर व्यक्त किया है।
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