कृष्णबिहारी मिश्र के बाद जिस व्यक्ति ने पत्रकारिता के इतिहास के अनुशीलन का मानक प्रस्तुत किया है वे हैं विजयदत्त श्रीधर । आज उनकी राष्ट्रव्यापी पहचान पत्रकारिता के इतिहास को सँजोने और सहेजने वाले व्यक्ति के रूप में है। वे पत्रकारिता के कितने गंभीर अध्येता हैं यह देखने के लिए उनकी कोई पुस्तक ले सकते हैं। उदाहरण के लिए पहला संपादकीय'' से ही बात आरंभ करें तो उस पुस्तक से समूची हिन्दी पत्रकारिता की गणेश परिक्रमा हो जाती है। उस किताब की लंबी प्रस्तावना में श्रीधरजी ने हिन्दी पत्रकारिता की पूरी कहानी कह दी है। प्रस्तावना के बाद श्रीधरजी ने 1826 से लेकर 2004 के बीच की अवधि की 20 प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं से उनकी पहली संपादकीय टिप्पणी प्रस्तुत की है। इनमें ''उदन्त मार्त्तण्ड'' और ''बंगदूत'' की संपादकीय टिप्पणियाँ हिन्दी पत्रकारिता के उद्भव काल की हैं। ''भारत मित्र'' और ''उचित वक्ता'' की संपादकीय टिप्पणियाँ आजादी की पहली लड़ाई के बाद के दौर की हैं। विजयदत्त श्रीधर ने जिन पत्र-पत्रिकाओं के अग्रलेखों को उनके मूल स्वरूप में संजोया है वे अपने युग और पत्रकारिता की प्रवृत्तियों का प्रतिनिधित्व करती हैं। इस तरह वे अग्रलेख भिन्न-भिन्न कालखंडों की परिस्थितियों की श्रृंखला प्रस्तुत करते हैं। हर अग्रलेख के संचयन के साथ श्रीधरजी ने मूल्यवान टीप लिखी है ताकि संदर्भ सुस्पष्ट होता जाए। पुस्तक के विमर्श खंड में रामानंद चट्टोपाध्याय इंद्र विद्यावाचस्पति बाबूराव विष्णु पराडकर माखनलाल चतुर्वेदी गणेश शंकर विद्यार्थी और आचार्य नरेंद्र देव के व्याख्यान / आलेख भी संकलित हैं जो पत्रकारिता के मर्म को समझने की कुंजी देते हैं। : प्रो. कृपाशंकर चौबे
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