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यदि किसी को भारत के ग्राम्य जीवन के दर्शन करने हों तो उसे शरतचंद्र के उपन्यास पढ़ लेने चाहिए बस सारा भारत चलचित्र की भाँति ही उसकी आँखों के सामने हाजिर हो जाएगा। समाज के तथाकथित उच्च विशेषतया ब्राह्मण वर्ग में पारिवारिक एवं सामाजिक संबंधों का कितना और किस प्रकार शोषण किया जाता रहा है इस का प्रत्यक्ष उदाहरण है शरतचंद्र चट्टोपाध्याय का बहुचर्चित उपन्यास ‘विप्रदास’।ऊँच-नीच छुआछूत संध्या पूजा आदि पाखंडों के चलते समाज में सरल हृदया नारियों की कोमल भावनाओं से कैसे खिलवाड़ किया जाता है―यह भी विप्रदास का प्रमुख वर्ण्य विषय है। परंपरागत बंधनों से मुक्त होने की छटपटाहट को रेखांकित करना शरतचंद्र की प्रमुख विशेषता है जो विप्रदास में भी सहज ही देखी जा सकती है। इसका अनुवाद सीधे बंगाली भाषा से किया गया है।
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