...बचपन से कहने-सुनने का जो संस्कार मिला उसे जीवन भर जिलाये रखते हुए अगली पीढ़ी तक पहुंचाने के दायित्व का भी निर्वहन करना जरूरी था। शायद इसलिए भी इस संग्रह को प्रस्तुत करने का मन हुआ। गांव के जीवन की पीड़ाएं अंदर गहरे तक धंसी हैं। नई पीढ़ी के लिए उसका एहसास भी कर पाना संभव नहीं है। चिलचिलाती धूप आग की लौ सी लू की लपटें और इन सबके बीच नार मोंट और पुर हांकते लोगों की कल्पना से आज भी सिहरन होती है। गंगाजल-सी पवित्र सोच और निष्कलुष विचार वाले उस दौर के किसानों की कथा व्यथा हृदय के पटल पर आज भी अंकित हैं। उसी पीड़ा को शब्द भर देने की कोशिश रही है मेरी। कहानी के फार्म व कथ्य की परवाह किये बिना शब्द कागज पर उतरते चले गये हैं। शहर आने के बाद दुहरे चरित्रें के बीच पैदा हुए अनुभव भी कुछ एक कहानियों में उतरे हैं।कुछ किस्से हैं जो कई बार जीवंत रूप में उतर आये हैं। एक मनुष्य होने के नाते घृणित पात्रें को जस-का-तस रखने में मुझे गुरेज नहीं हुआ। किस्से कहानियों में कल्पना लोकों का भी विचरण जायज है। बचपन से मिले संस्कारों की वजह से कई बार आहत होने भर से कुछ पात्रों कथानकों का सृजन कमजोर कथा का कारण हो सकता है पर यह एक कोशिश कइयों को अच्छी लग सकती है। मेरे अपने इस छोटे-से प्रयास को आपके सामने लाकर प्रस्तुत करने में मुझे अत्यधिक प्रसन्नता हो रही है। किस्से कहानियों को लिखते हुए मैंने एक आंतरिक खुशी का अनुभव किया है। यह प्रस्तुतिकरण की भी ख़ुशी हो सकती है या फिर कुछ नई विधा में जोर आजमाइश की भी। कुछ एक कहानियाँ जो पहले लिखीं व छपी थीं उन्हें भी इनमें सम्मिलित किया गया है। उम्मीद है कि पाठकों चिंतकों का स्नेह पूर्ववत मिलेगा।... ---हृदयेश मयंक
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