उपन्यास ‘विष-सुंदरी उर्फ सूरजबाई का तमाशा’ लेकर प्रस्तुत हैं। लोकनाटड्ढ तमाशा और इस की निष्ठापूर्वक आराधना करनेवाली राजबाला और उसकी बेटी सूर्यबाला अर्थात सूरजबाई की यह कहानी है। पुरुषसत्ता अर्थात पितृसत्तात्मक समाज व्यवस्था में राजबाला और सूरजबाई किस तरह शोषण का शिकार बनते हैं इस पर तबस्सुम ने प्रकाश डाला है। इस उपन्यास की दृश्यात्मकता बहुत ही सशत्तफ़ है। सभी दृश्य चलचित्रें की भाँति पाठकों के मानस पटल पर उभर सकते हैं। संवाद रचना कौशलयुत्तफ़ है। दृश्यों की चित्रमालिका प्रभावी रूप से इस उपन्यास से पाठकों को बांधे रऽ सकती है। यही भाषा की सर्जनात्मक विशेषता भी होती है।
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