प्रस्तुत पुस्तक में प्रकृति द्वारा निर्मित सर्वोच्च कृति 'मनुष्य' के सांसारिक जीवन को यथार्थपूर्ण बनाने हेतु उसके व्यक्तित्व उसकी सामाजिक व्यवस्था एवं सांसारिक मानकों को उनके मूल स्तर पर उद् घाटित/परिभाषित/ रेखांकित किया गया है।प्रत्येक मनुष्य उसकी परिस्थितियों एवं समझ में भिन्नता होने के कारण सतही स्तर पर पूर्णतया भिन्न व्यवहार करता है। किन्तु मूलतः सभी मनुष्य एक समान शाश्वत नियमों का पालन करते हुए व्यवहार कर रहे होते हैं। उदाहरणतया- पाँच व्यक्तियों का एक समूह भूख लगने पर क्रमशः दाल-रोटी नान-बोटी मछली-भात ब्रेड-जैम सांभर-चावल बनाकर भोजन करते हैं। परन्तु मूलतः ये सभी के सभी अपने शरीर के पोषण की आवश्यकताओं को पूर्ण कर रहे होते हैं।यह पुस्तक ऐसे ही कुछ मूल सिद्धान्तों का; जो कि जीवन के विविध क्षेत्रों से सम्बन्धित हैं उनका उद् घाटन करती है।आप अपनी विचारशीलता को प्रयोग करके इन मूल सिद्धान्तों की सहायता से निश्चित ही संसार को एक अर्थपूर्ण दिशा और स्वयं को अधिक सक्षम एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व दे पायंगे।
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