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This combo product is bundled in India but the publishing origin of this title may vary.Publication date of this bundle is the creation date of this bundle; the actual publication date of child items may vary.Hasiba Kheliba Dhariba Dhyanamओशो कहते हैं - ‘मैं मृत्यु सिखाता हूं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मैं जीवन का विरोधी हूं।’ उनके लिए जीवन और मृत्यु के भय से त्रस्त लोगों ने भाग-भागकर जीवन के पलड़े में घुसना और उसी में सवार हो जाना अपना लक्ष्य बना लिया। नतीजा यह हुआ कि जीवन का पल फिर निसर्ग को उस संतुलन को ठीक करने के लिए आगे आना होता है इससे आपको मृत्यु और अधिक भयकारी लगने लगती है। मृत्यु रहस्यमय हो जाती है। मृत्यु के इसी रहस्य को यदि मनुष्य समझ ले तो जीवन सफल हो जाए। जीवन के मोह से चिपटना कम हो जाए तो अपराध कम हों। मृत्यु से बचने के लिए मनुष्य ने क्या-क्या अपराध किए है। इसे अगर जान लिया जाए तो जीवन और मृत्यु का पलड़ा बराबर लगने लगे। इसलिए जब ओशो कहते हैं कि ‘मैं मृत्यु सिखाता हूं’ तो लगता है जीवन का सच्चा दर्शन तो इस व्यक्ति ने पकड़ रखा है उसी के नजदीक उसी के विचारों के करीब आपको यह पुस्तक ले जाती है। जीवन को सहज आनंद मुक्ति और स्वच्छंदता के साथ जीना है तो इसके लिए आपको मृत्यु को जानकर उसके रहस्य को समझकर ही चलना होगा। मृत्यु को जानना ही जीवन का मर्म पाना है। मृत्यु के घर से होकर ही आप सदैव जीवित रहते हैं। उसका आलिंगन जीवन का चरम लक्ष्य बना लेने पर मृत्यु हार जाती है। इसी दृष्टि हार जाती है। इसी दृष्टि से ओशो की यह पुस्तक अर्थवान है।Akath Kahani Prem Kiओशो के प्रखर विचारों ने ओजस्वी वाणी ने मनुष्यता के दुश्मनों पर संप्रदायों पर मठाधीशों पर अंधे राजनेताओं पर जोरदार प्रहार किया। लेकिन पत्र-पत्रिकाओं ने छापीं या तो ओशो पर चटपटी मनगढंत खबरें या उनकी निंदा की भ्रम के बादल फैलाए। ये भ्रम के बादल आड़े आ गये ओशो और लोगों के। जैसे सूरज के आगे बादल आ जाते हैं। इससे देर हुई। इससे देर हो रही है मनुष्य के सौभाग्य को मनुष्य तक पहुंचने में।
ओशो के प्रखर विचारों ने ओजस्वी वाणी ने मनुष्यता के दुश्मनों पर संप्रदायों पर मठाधीशों पर अंधे राजनेताओं पर जोरदार प्रहार किया। लेकिन पत्र-पत्रिकाओं ने छापीं या तो ओशो पर चटपटी मनगढंत खबरें या उनकी निंदा की भ्रम के बादल फैलाए। ये भ्रम के बादल आड़े आ गये ओशो और लोगों के। जैसे सूरज के आगे बादल आ जाते हैं। इससे देर हुई। इससे देर हो रही है मनुष्य के सौभाग्य को मनुष्य तक पहुंचने में।Mera Marg Badalon Sa Margओशो के प्रखर विचारों ने ओजस्वी वाणी ने मनुष्यता के दुश्मनों पर संप्रदायों पर मठाधीशों पर अंधे राजनेताओं पर जोरदार प्रहार किया। लेकिन पत्र-पत्रिकाओं ने छापीं या तो ओशो पर चटपटी मनगढंत खबरें या उनकी निंदा की भ्रम के बादल फैलाए। ये भ्रम के बादल आड़े आ गये ओशो और लोगों के। जैसे सूरज के आगे बादल आ जाते हैं। इससे देर हुई। इससे देर हो रही है मनुष्य के सौभाग्य को मनुष्य तक पहुंचने में।ओशो के प्रखर विचारों ने ओजस्वी वाणी ने मनुष्यता के दुश्मनों पर संप्रदायों पर मठाधीशों पर अंधे राजनेताओं पर जोरदार प्रहार किया। लेकिन पत्र-पत्रिकाओं ने छापीं या तो ओशो पर चटपटी मनगढंत खबरें या उनकी निंदा की भ्रम के बादल फैलाए। ये भ्रम के बादल आड़े आ गये ओशो और लोगों के। जैसे सूरज के आगे बादल आ जाते हैं। इससे देर हुई। इससे देर हो रही है मनुष्य के सौभाग्य को मनुष्य तक पहुंचने में।ओशो के प्रखर विचारों ने ओजस्वी वाणी ने मनुष्यता के दुश्मनों पर संप्रदायों पर मठाधीशों पर अंधे राजनेताओं पर जोरदार प्रहार किया। लेकिन पत्र-पत्रिकाओं ने छापीं या तो ओशो पर चटपटी मनगढंत खबरें या उनकी निंदा की भ्रम के बादल फैलाए। ये भ्रम के बादल आड़े आ गये ओशो और लोगों के। जैसे सूरज के आगे बादल आ जाते हैं। इससे देर हुई। इससे देर हो रही है मनुष्य के सौभाग्य को मनुष्य तक पहुंचने में।ओशो कहते हैं - ‘मैं मृत्यु सिखाता हूं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मैं जीवन का विरोधी हूं।’ उनके लिए जीवन और मृत्यु के भय से त्रस्त लोगों ने भाग-भागकर जीवन के पलड़े में घुसना और उसी में सवार हो जाना अपना लक्ष्य बना लिया। नतीजा यह हुआ कि जीवन का पल फिर निसर्ग को उस संतुलन को ठीक करने के लिए आगे आना होता है इससे आपको मृत्यु और अधिक भयकारी लगने लगती है। मृत्यु रहस्यमय हो जाती है। मृत्यु के इसी रहस्य को यदि मनुष्य समझ ले तो जीवन सफल हो जाए। जीवन के मोह से चिपटना कम हो जाए तो अपराध कम हों। मृत्यु से बचने के लिए मनुष्य ने क्या-क्या अपराध किए है। इसे अगर जान लिया जाए तो जीवन और मृत्यु का पलड़ा बराबर लगने लगे। इसलिए जब ओशो कहते हैं कि ‘मैं मृत्यु सिखाता हूं’ तो लगता है जीवन का सच्चा दर्शन तो इस व्यक्ति ने पकड़ रखा है उसी के नजदीक उसी के विचारों के करीब आपको यह पुस्तक ले जाती है। जीवन को सहज आनंद मुक्ति और स्वच्छंदता के साथ जीना है तो इसके लिए आपको मृत्यु को जानकर उसके रहस्य को समझकर ही चलना होगा। मृत्यु को जानना ही जीवन का मर्म पाना है। मृत्यु के घर से होकर ही आप सदैव जीवित रहते हैं। उसका आलिंगन जीवन का चरम लक्ष्य बना लेने पर मृत्यु हार जाती है। इसी दृष्टि हार जाती है। इसी दृष्टि से ओशो की यह पुस्तक अर्थवान है।