''व्यंग्य : कल आज और कल'' इस विधा के समय के साथ बदलते स्वरूप चुनौतियों और भविष्य की संभावनाओं पर प्रकाश डालता है। ''व्यंग्य आलोचना के वर्गीकरण बिंदुय् लेख व्यंग्य के मूल्यांकन के लिए आवश्यक सैद्धांतिक ढांचे और मानदंडों की पड़ताल करता है यह समझने का प्रयास करता है कि व्यंग्य की आलोचनात्मक समझ कैसे विकसित हो सकती है। पुस्तक व्यंग्य की अभिव्यक्ति की विविधता को भी रेखांकित करती है। काव्य रचनाओं में हास्य व्यंग्यय् और हिंदी नाटकों में व्यंग्यय् जैसे लेख स्पष्ट करते हैं कि कैसे कविता की सघनता और नाटक की नाटकीयता में भी व्यंग्य अपनी पैनी धार बनाए रखता है। नुक्कड़ नाटकों में प्रायः व्यंग्य ही वह रोचक अस्त्र होता है जो दर्शकों को बांधे रखता है। इसी तरह लघुकथा में जो चमत्कृत करता अंत किये जाने की परंपरा दृष्टव्य है उसमें भी व्यंग्य का सहारा लघुकथा को आकर्षक बनाता है। ''व्यंग्य के विविध आयाम'' लेख विधा की बहुरूपता को और विस्तार से व्याख्यायित करता है।--विवेक रंजन श्रीवास्तव
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