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About The Book
Description
Author
लोग कहते हैं कि कल्पना का कोई विवेक नहीं होता वह विवेक के सहारे नहीं चलती है। मन और मस्तिष्क अकसर अलग-अलग दिशाओं में चलते दिखाई देते हैं कम-से-कम माना तो यही जाता है। लेकिन मुझे तो ऐसा लगा कि जब भी मस्तिष्क ने कल्पना को रोका-टोका तो उसे सही दिशा में मोड़ने के लिए ही वह ऐसा न करता तो शायद मन कहीं ऐसी गलियों में भी फँस सकता था जो थोड़ी ही दूर जाकर बंद हो जाती हों। ऐसी ही किसी अंधी गली में कल्पना भी दम तोड़ती। इसीलिए बार-बार जीवन की कठोर वास्तविकताएँ इस प्रेम-कहानी में अपना योगदान करने टपक ही पड़ती थीं। जो प्रेम-प्रसंग एक भौतिक सचाई से आरंभ हुआ हो वह अपनी यात्रा में न तो प्रत्यक्ष से दूर रह सकता था न इतिहास को नजरअंदाज कर सकता था। ऌफ्लीटफुट की प्रेमकथा भी सच है आदिवसियों की पीड़ा भी सच है भारतवंशियों की उलझनें और विसंगतियाँ भी सच ही हैं और उन यूरोपीय बाल गुलामों की त्रासदी भी सच ही है। ये और कई सच एक माला में पिरोना संभव नहीं था अगर एथीना न होती और उसे एक अंगद नहीं मिलता। सब घटनाएँ सारे तथ्य इन्हीं दो काल्पनिक पात्रों के चारों ओर घूमते रहे उसी तरह बँधे हुए जैसे सूर्य के साथ उसके ग्रह। वैसे भी कोई सच एकदम कल्पना से रहित होकर हम तक कहाँ पहुँच पाता है?.