इस संग्रह की कविताएँ विविध रंगों से ओतप्रोत हैं। इनमें मध्यमवर्गीय समस्याओं का सहज चित्रण है अतीत की स्मृतियाँ हैं मोहभंग है पर्यावरण के प्रति चिन्ता है तो मनुष्य की क्रूर हिंसक प्रवृत्तियों का अक्स भी। यहाँ अमानुषिक बलात्कार की शिकार निर्भया पर कविता है तो कन्याभ्रूण हत्या पर भी कवि की निगाह गयी है। स्त्री-विमर्श को सामने लाती कई बेहतरीन कविताएँ हैं। कवि पितृसत्ता के बढ़ते प्रभाव से चिन्तित है और यह चिन्ता बढ़ते हुए समाज में व्याप्त धार्मिक अंधविश्वास अपनी ज़मीन से विस्थापित लोग तथाकथित राष्ट्रवाद नकली लोकतंत्र कंक्रीट के जंगलों की निरंतर बाढ़ चिड़ियों का लुप्त होना बाज़ार का आधिपत्य और सूखती सँ सब कुछ को समेट लेती है।.
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