इस संग्रह की लघुकथाएँ सामाजिक बंधनों रीति-रिवाजों पर चोट करती हैं। हरभगवान चावला अपनी लघुकथाओं में समाज के हाशिए के वर्गों पर बात करते हुए कहानी बुनते हैं। इन लघुकथाओं में स्त्री जीवन की विषमताएँ भी हैं तो भिन्न लैंगिक पहचान के संघर्ष भी। ये लघुकथाएँ नहीं हैं बल्कि जीवन के द्वंद्व युद्ध में परिस्थितियों को चित करती उसके हाथ मात खाती हुई मनुष्यता की अधजली दर्जबंदी हैं।
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