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About The Book
Description
Author
प्यार... कभी महसूस किया है... अपने आप को खो कर सब कुछ पाने का अहसास? यह सिर्फ एक कहानी नहीं बल्कि ज़िंदग़ी की वो सच्चाई है जिसे जानते हुए भी हम अनजान बने रहते हैं। आख़िर क्यों मिलने से पहले जो प्यार ज़िंदग़ी के लिए ज़रूरत लगता है मिलने के बाद वही प्यार उसी ज़िंदग़ी के लिए घुटन बन जाता है.. आख़िर क्यों... कभी-कभी हकीकत और सपनों के बीच की दूरी का अहसास ही नहीं होता.. क्यों प्यार सिर्फ प्यार ना रह कर पागलपन बन जाता है... और फिर यही पागलपन ज़िंदग़ी के लिए ऐसी सज़ा जहां ना तो ज़ख़्मों की गिनती हो सकती है और ना ही दर्द का हिसाब। कुछ ऐसे ही सवालों को खड़ा करती और उनके जवाब ढूंढती - वीरेन मानसी और उसकी परी की ये प्रेम-कहानी जिसमें प्यार की नरमी का अहसास भी है और बेवफाई के कांटों से छलनी होने का दर्द भी... दोस्ती की राह पर प्यार और प्यार की राह पर दोस्ती की कशमकश को सुलझाने की कोशिश में कैसे वीरेन मोम से पत्थर बन गया..... और क्यों उसके पास कहने के लिए सिर्फ इतना ही बचा - वो चली गई... एक ऐसे सफ़र परजिसका रास्ता मेरी गली से हो कर नही गुज़रता।और आज - मैं अपनी तन्हाई मेइस कदर खो गया हूंसांसें तो चल रही हैंपर मुर्दा हो गया