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About The Book
Description
Author
रिश्ता कोई भी हो स्नेह एवं सम्मान के धागों से बंधा होना चाहिए। किसी से नाराज़ होना या किसी बात पर नाराज़ होना स्वभाविक सा भाव है। हर किसी की अपनी एक सोच एक विचारधारा एक पसंद-नापसंद होती है। जो आपकी सोच आपकी विचारधारा आपकी पसंद-नापसंद से मिलती जुलती हो बिलकुल भी ज़रूरी नहीं है। अधिकतर पति पत्नी हों या प्रेमी युगल कुछ समय में ही इस बात को दरकिनार सा कर देते हैं। अपनी बातों अपने विचारों को एक दूसरे पर थोपना जैसे मकसद सा हो जाता है। और इसके साथ ही शुरू होता है आपसी वाद-विवाद में शब्दों की मर्यादा को भूल जाना। नोक झोक वाद विवाद में कोई बुराई नहीं है होना चाहिए। लेकिन शब्दों का चुनाव सही नहीं हुआ तो दूसरों के शब्द ही नहीं आपके अपने शब्द भी एक समय के बाद आपका जीना दुश्वार कर देंगे। शब्दों के घाव कभी नहीं भरते। बल्कि समय के साथ साथ और गहरे होते जाते हैं। इन कविताओं के माध्यम से बस इतनी सी बात समझाना चाहता हूँ कि जब सामने वाला इन्सान ही नहीं रहेगा तो शिकवे शिकायतें किस से सुनोगे किस से करोगे। जब तक हो इश्क़ में रह लो। जिसके भी साथ हो कम से कम उसे यह अहसास तो हो कि तुम से बेहतर उसके साथ कोई और हो ही नहीं सकता था।