*COD & Shipping Charges may apply on certain items.
Review final details at checkout.
₹238
₹350
32% OFF
Paperback
All inclusive*
Qty:
1
About The Book
Description
Author
About the Book: यात्री- एक संत-एक वियोगी एक यात्री की कहानी है। बचपन से बच्चों को सम्हालती घर के कामों में व्यस्त सर दुखने पर सर पर कपड़ा बांधे ही मां को देखा। पुलिस अधिकारी की पत्नि होने पर भी इतने बड़े परिवार को पालते-सम्हालते हमेशा तंगी ही देखी। ज्येष्ट पुत्र और मां की तकलीफों को कम करने के लिये अधिकतर मां के पास रहता कुछ काम भी करवा देता। मां को आश्वासन देता की बड़ा होकर उन्हे रानी बनाकर रखेगा। मां हंसती बोलती बाहर जाकर खेलता क्यों नहीं? मां की चिंताओं जानकर वह भी सोचता कैसे-क्या करे? मां ने ‘‘बड़े’’ को बड़ा आदमी बनाने का प्रयास किया जो फलीपूत भी हुआ। अचानक 22-23 साल की उम्र में अचानक माता-पिता का देहावसान हो गया। सात छोटे भाई-बहन ही अपने बच्चे थे। अपने स्वंय के परिवार की सुविधाओं को कमकर तंगी में ही सबको उच्चपदस्त् अधिकारी बनाया पर जब खुला आकाश मिला तो परिवार की रीड पत्नि कैंसर ग्रस्त हो चली गयी। सारा संसार खत्म हो गया। बचपन से अपने विचारों की अभिव्यक्ति लेखन से होती थी।यही जीवन का संबल था। घोर कठनाईयों में कुछ दिनों के लिये सबसे दूर एकान्त में ट्रेकिंग के लिये चले जाते थे। साहित्य आकादमी से पुरस्कृत हुए। सुदर्शन गोरा भूरी हरी आंखों वाला मृदुभाषी अन्दर से कठोर कर्तव्यनिष्ठ वियोगी ने समाज को खूब लौटाया। सैकड़ों लड़के लड़कियों को संवारा आगे बड़ाया। कर्नल साहब के नाम से प्रसिद्ध हुए। प्रोफेसर बनने की इच्छा पूरी हुई। पत्रकारिता मे भी झंडे गाड़े। सबके लिये कोमल स्नेह सहायता में जीवन अर्पण कर दिया। अंग्रेजी डोगरी उर्दू के प्रकाण्ड पंडित ने दुनिया में अधिकतम सानेट लिखीं। एक संत सबके लिए जीए पर अपने को नगण्य ही माना।