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About The Book
Description
Author
प्रत्येक शोध विषय का चयन अपने पीछे कुछ विशेष प्रयोजन एवं उद्देश्य रखता है। प्रस्तुत शोध विषय पर कार्य करने का भी मेरा विशेष उद्देश्य है। बचपन से ही लोक नाटकों को देखते-देखते मेरी अभिरुचि निरन्तर पल्लवित एवं पुष्पित होती रही है। मंच पर होने वाले अभिनय एवं प्रस्तुतियों से मेरा मन सदैव आकर्षित और अनुप्रेरित रहा है। स्नात्तकोत्तर शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात नाटकों पर शोध कार्य करने का मानस बनाया परन्तु अनेक शोध ग्रंथ पढ़ने गुरुजनों से विचार विमर्श करने के पश्चात स्पष्ट हुआ कि नाटकीय विधा पर काफी शोध कार्य सम्पन्न हो चुके है। परन्तु नाटकों के रंगमंचीय मूल्यांकन से सम्बन्धित अभी तक कोई भी शोध प्रबन्ध नहीं लिखा गया है। नाटक की पूरी सफलता उसके रंगमंच पर अभिनीत होने के पश्चात ही प्रदर्शित होती है। पिछले दो-तीन दशकों में नाट्य साहित्य का विपुल सृजन हुआ है। ऐसी स्थिति में मैं अपनी सीमाओं का ध्यान रखते हुए राजस्थान के यशस्वी नाटककार “यादवेन्द्र शर्मा ‘चन्द्र’ के नाटकों का रंगमंचीय मूल्यांकन” विषय पर शोध कार्य सम्पन्न करने का निश्चय किया। समकालीन परिवेष में रंगमंच हमारे जीवन से कितना जुड़ा हुआ है। तथा उसमें कितनी अच्छाइयां एवं कमियां है। इन सब बातों पर अपने शोधात्मक निष्कर्ष विश्लेषित करना मेरा उद्देश्य है। ऐसे नवीन विषय से मेरे शोध कार्य की महत्ता अवश्य बढ़ेगी। तथा नाटक और रंगमंच के अंतः सम्बन्धों पर एक सम्पूर्ण शोध कार्य पाठक वर्ग के समक्ष प्रस्तुत होगा।