लेखक अपनी जिन्दगी के सफर में जीवनी के उतार-चढ़ाव से अनुभव करते हुए यह पाया है कि, हर इन्सान पैदाइशी स्वार्थी, लालची और कामचोर प्रवित्ति का होता है और इन्ही अवगुणों के कारण, पारिवारिक जीवन में व्याप्त बुराई अपना पराया, सामाजिक जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार, अत्याचार, बेइमानी आदि चरम पर है. इन्हीं अपने अनुभवों को कलमबद्ध करते हुए, समाज को ढोंग- पाखंड और अन्य सामाजिक बुराइयों से मुक्ति दिलाने तथा उनमें वैज्ञानिक सोच पैदा करने की प्रवृत्ति के साथ साथ एक अच्छा भारतीय नागरिक बनने की प्रेरणा देना ही मुख्य मकसद है.
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