Yadon Ke Jharokho se
Hindi


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About The Book

यह उपन्यास उन सभी देशी एवं विदेशी प्रेंमी प्रेंमिकाओं को समर्पित है जिन्हों ने उस प्रेंम की उदात्त कोमल भावनाओं को अपनें हृदय से महशूस किया है। प्रेंम और वासनाएं जीवन के दो पहलू हैं दोनों एक दूसरें के पूरक होतें हुए भी एक दूसरे से भिन्न हैं किन्तु दोनों का अस्तित्व एक दूसरे से जुड़ा हुआ है। जिस तरह दिन की पहिंचान रात्रि से होती है ठीक उसी प्रकार प्रेंम और वासना का अपनें अपनें स्थान पर महत्व है। आज की भागमभाग जिंदगी में भी उस प्रेंम के दर्शन यदा कदा हो जातें हैंकिन्तु आज की विपरीत परिस्थितियों में इस प्रेंम का रूप ही विकृत हो चला है अधिकांशतया स्वतंत्र जीवन शैली नें वहुत कुछ खो दिया है आज के परिपेक्ष में प्रेंम तो है किंतु अधिकांश क्षणिक आकर्षण में सिमट कर अपनें द्वितीय रूप में आचुका है। जो हमारी भारतीय संस्कृति और चारित्रिक भावनाओं को ठेस पहुँचानें के साथ साथ हमारें नैतिक मूल्यों के ह्रास की ओर संकेत करता ही दिखलाई देता है। प्रेंम की भावना को समझना और उसे अहसास करना हर किसी प्रेंमी के बश की बात नहीं । इसलिए इस विषय पर कुछ अधिक ना कह कर सिर्फ़ इतना कहना है कि कलम तू इस हसीन जज़्बा की कहाँ तक वक़ालत करेगी ? इसलिए सिर्फ मौन ही रहकर इसका अहसास अपनें हृदय में कर तो बेहतर है।
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