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About The Book
Description
Author
भावनाओं से सजी ये किताबभिन्न विषयों पे बात करती है । कहीं मजहबी एकता तो आपसी रिश्तों की बात तो कहीं समजिक कुरीतियों पे सवाल उठाती। कहीं कॉरोनाकाल की विडंबना व्यक्त करती जिसने इंसान को करीब भी कर दिया और दूर भी कर दिया। लोग अक्सर कहते हैं .. काश हम अपने दोस्तों की तरह अपने रिश्तेदार भी चुन सकते.. पर ये किताब सवाल करती है .. क्यों.. ?! जब हमें अपने ईश पे आस्था है तो उसके बनाए रिश्तों से विरक्ति क्यों । स्पर्धा ज़रूरी है अच्छी है । स्पर्धा न हो तो उन्नति तरक्की का द्वार ही बंद हो जाए। मगर इतनी क्यों जो इंसान को इंसान होने से रोक दे ! एक दूसरे के दुश्मन हो जाएं लोग ! मानवीय संवेदना स्पंदन रिश्ते - जज़्बात प्रेम माधुर्य समस्त इंसानी संबंधों को अभिव्यक्त करती ये किताब हिन्द साहित्य के पाठकों के लिए एक सुंदर भेंट है । हर कविता अलग अंदाज़ में बस यही पुकारती है - प्यार मुमकिन है !