Yakshagunjan


LOOKING TO PLACE A BULK ORDER?CLICK HERE

Piracy-free
Piracy-free
Assured Quality
Assured Quality
Secure Transactions
Secure Transactions
Fast Delivery
Fast Delivery
Sustainably Printed
Sustainably Printed
Delivery Options
Please enter pincode to check delivery time.
*COD & Shipping Charges may apply on certain items.
Review final details at checkout.

About The Book

जिस विषय वस्तु पर महाकवि कालिदास की लेखनी चल चुकी हो उस विषय पर कुछ लिखना बालहठ के अतिरिक्त कुछ नहीं है। परन्तु स्वयं महाकवि ने रघुवंशम् में कहा है - अथवा कृत्वाग्द्वारे कवय: पूर्वसूरिभि:। इसी उक्ति को मूलमंत्र मान कर मैंने ये साहस किया है।इस रचना की कथा अक्षरशः महाकवि कालिदास के मेघदूतम पर आधारित है। रंचमात्र भी परिवर्तन नहीं किया गया है।नवविवाहिता पत्नी के प्रबल मोह में अपने कर्तव्य में प्रमाद करने के करने वाले यक्ष को कुबेर के शापवश रामगिरि पर्वत पर एक वर्ष वास करना पड़ा है।विरही यक्ष अत्यन्त दुर्बल हो गया है। आठ महीने इसी तरह बीत जाते हैं।एक दिन उसने पर्वत के शिखर पर हाथी के प्रतिरूप का बादल देखा।उसे देख कर लग रहा था जैसे कोई हाथी अपने दांँत को तिरछा करके मिट्टी उखाड़ रहा हो।यक्ष के मन में अपनी प्रिया के पास सन्देश भेजने की इच्छा हुई।और कोई सन्देशवाहक था नहीं। बादल को ही दूत बना कर उसी से अपना सन्देश भेजना चाहता है।गिरिमल्लिका के पुष्प चुनकर मेघ को अर्घ्य देकर स्वागत करता है और अपना सन्देश पहुंँचाने का निवेदन करता है।आगे पूरी कथावस्तु में वह बादल को अपने घर जाने का मार्ग बताता है ।मार्ग में पड़ने वाले प्रत्येक पर्वतों और नदियों का बड़ा ही मनोरम वर्णन करने के बाद अपना सन्देश देकर कहता है कि मित्र वहांँ से आप मेरा सन्देश देकर मेरी पत्नी का सन्देश लाकर मुझे दे दो।और कथा समाप्त हो जाती है।.
downArrow

Details