मानव को अपने जीवन में जिस चीज़ कि सबसे ज्यादा जरुरत महसूस हुई वह है सुख क्यूँकि मनुष्य को सुख प्राप्त हो जाये तो वह संतुष्ट हो जाता है पर ऐसा होना संभव नहीं है। सृष्टि कि संरचना के उपरांत कुछ न्यूनता जरूर रह गयी थी लेकिन भगवान शिव ने इन सब न्यूनता को ध्यान में रखते हुए तंत्र-मंत्र-यन्त्र का निर्माण किया जिससे मानव अपने जीवन कि न्यूनता को समाप्त कर सके। इन्ही में से एक महत्वपूर्ण विद्या है ""यन्त्र विद्या"" यन्त्र अपने आप में चमत्कारी है कठिन से कठिन कार्य को भी सम्पन्न करने कि शक्ति यंत्रो में है। यन्त्र तत्वम मैंने इस पुस्तक को इसलिए नाम दिया है क्यूँकि यन्त्र शास्त्र अपने आप में उच्च कोटि का है और एक असीमित सागर के सामान है जब तक अंको का अंत नहीं किया जा सकता तब तक यंत्रो के निर्माण का अंत भी नहीं किया जा सकता है। यंत्रो में साक्षात् ईश्वर का निवास होता है क्यूँकि यंत्रो में अंक बीज और पांच तत्वों का समागम होता है जिसको लिखने हेतु जो विशेष प्रकार कि स्याही और कलम का प्रयोग होता है वो यन्त्र को शक्ति प्रदान करती है या यूँ कहे कि देवताओं को स्थान देती है। यन्त्र की आकृति और उनमें छुपे बीज जैसे ह्रीं श्रीं लं रं क्रीं आदि ही यंत्रो को एक दूसरे से भिन्न करते है। यंत्रो को कुछ विशेष मुहूर्त नक्षत्र होरा आदि में ही लिखा जाता है। यंत्रो का प्रयोग कठिन से कठिन कार्यो को सफल कर देता है। यंत्रो से सिद्धि भी प्राप्त की जा सकती है यंत्रो देवी देवता की सिद्धि प्राप्त करने में सहायक होते है यंत्र भूत प्रेत नाशक भी होते है। खोये व्यक्ति या वास्तु को वापस पाना विशेष कार्य सिद्धि आदि यंत्रो के माध्यम से संभव है।
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