रांगेय राघव जी इस उपन्यास की भूमिका में स्वयं बताते हैं कि इस उपन्यास की रचना का मूलस्रोत त्रिपिटक ग्रंथ रहे हैं उन्होंने त्रिपिटक ग्रंथों में महात्मा बुद्ध के जीवन से संबंधित जिन कथाओं को पढ़ा उनके आधार पर ही उन्होंने इस उपन्यास के कथानक को गढ़ा किंतु एक बात वह स्पष्ट कहते हैं कि मैंने अपनी कथा का दृष्टिकोण ऐतिहासिक रखा है धार्मिक या राजनीतिक नहीं! वास्तव में इस उपन्यास में यह बताया गया है कि जिस समय बुद्ध का उत्कर्ष काल था उस समय भारतीय इतिहास में धार्मिक और राजनीतिक असंतुलन भी अपने उत्कर्ष पर हो गया था।
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