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About The Book
Description
Author
बड़ा विचित्र है यह। भीतरी सत्य को कोई नही समझ पाता सब बाहरी बनावट पर रीझते हैं। यह भेद कहाँ तक किसी को समझाते फिरेंगे फिर कौन समझ सकता है? इसलिए हम जैसे दिखाई दे रहे हैं वैसे ही क्यों न समझे जायें। -गोविन्दवल्लभ पन्त