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About The Book
Description
Author
जिसकी आत्मा, बचपन में अपनी आँखों के सामने एक दलित नव-वधु के पैरों के पँजों को लाठियों से कुचलते हुए देखकर ऐसी जागी कि अन्तिम समय तक अन्याय का प्रतिकार करती रही, जो भारत विभाजन की हृदय विदारक त्रासदी यथाः सड़ांध ही सड़ांध, आकाश में मँडराते गिद्ध, चील और कौए, चारों तरफ़ घूमते आवारा कुत्ते, ख़ून से ज़ाम ट्रेनों के दरवाज़े, पूरी की पूरी बोगी लाशों से भरी हुई, माँ की अधनंगी लाश से चिपक कर भूँख से रोता बच्चा आदि-आदि का प्रत्यक्षदर्शी रहा, जो कलियुग में भी त्रेता के राम की तरह अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध संघर्षरत रहा, जिसने धनवान परिवार में पैदा होने के बाद भी अपने आदर्शों पर अड़े रहने के कारण अभाव की ज़िन्दगी को स्वेच्छा से अपनाया, ऐसे अज्ञात कर्मयोगी के संस्मरणों को मूर्त रूप देने का विनम्र प्रयास ही “यायावर” के रूप में सुधी पाठकों समक्ष प्रस्तुत है।