‘‘कुछ शब्द’’ सिन्दुर मंगलसूत्र बिन्दीया चूडिया और मेहन्दी .... इसे सुहागन का श्रृंगार माना गया हैं। सिन्दूर सुहागन की पहचान हैं सिन्दूर सुगाहन का अमूल्य आभूषण होता हैं। सिन्दूर से सुहाग सुहाग से सुहागन सुहागन से सौभाग्यवती ..... बिना सिन्दूर के सुहागन का श्रृंगार अधूरा हैं। पति की प्रताड़ना के बाद भी पत्नी सिन्दूर लगाना और करवाचौथ का व्रत रखना कभी नही भूलती। वक्त आने पर मान-सम्मान बचाने के लिए पत्नी अपना मंगलसूत्र तक बेच देती हैं लेकिन मांग में सिन्दूर लगाये बिना नही रह सकती। जुल्म और अत्याचार सहने के बाद पत्नी अपने पति को परमेश्वर मान कर उसकी पूजा करती हैं यह संस्कार केवल भारतीय नारी मे ही विहित हैं। ऐसे विषय पर आज लिखना मूर्खता हैं ... और ऐसी ही मूर्खता मैने की हैं। इस कथा की कल्पना करते वक्त सत्यवती सावित्री जैसी महान नारी नायिका बनकर मेरे सामने खड़ी हो गई और मैने यह कथा लिख डाली .... आज के दौर में सुहागिनों के मांग से सिन्दुर लुप्त होते देखा गया हैं सिन्दूर का रंग फिका पड़ने लगा हैं। मैने इस कहानी में फीके पड़ रहे सिन्दूर को सुर्ख करने का प्रयास किया हैं चन्द्रिका जैसी काल्पनिक पात्र के माध्यम से सिन्दूर के महत्व को पुनः जीवित करने की कोशिश की हैं। पति-पत्नी के मधुर रिश्तों में प्यार विश्वास सर्मपन और त्याग जैसी भावनाएं ही सीता और सावित्री जैसी श्रेष्ठ नारियों को जन्म देती है। मेरे द्वारा लिखित निर्मित और निर्देशित सभी फिल्में नारी प्रधान रही हैं। ‘‘ये कैसा सिन्दूर?’’.... पुरूष पसन्द करे या ना करें ...... महिलाए इसे अवश्य सराहेगी। लेखक निर्माता निर्देशक मोहन सिंह राठौड़ 415-416 ‘मूमल हाऊस’ आदर्श नगर विस्तार पाली राजस्थान
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