YOG KA JADU (HINDI)

About The Book

योग का आरंभ तब हुआ जब सृष्टि का आरंभ हुआ I भगवान शिव द्वारा इस योग की रचना की गई जिससे मनुष्य जाति मन और शरीर से निरोग रह सके I इस योग का अर्थ है भौतिक निराकार व साकार का मिलन I वास्तव में परमपिता परमेश्वर से सीधा संपर्क करने की विधि को योग कहते हैं I योग के विभिन्न रूप हैं - भक्ति योग कर्म योग ज्ञान योग व ध्यान योग Iयोग शुद्ध वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा मानव का अंतरंग व बहिरंग दोनों ही शुद्ध हो जाते हैं I अष्टांग योग के द्वारा हम ध्यान में प्रविष्ट होने के लिए आरंभिक प्रयास करते हैं I अष्टांग योग के द्वारा हम ध्यान में प्रविष्ट होने के लिए आरंभिक प्रयास करते हैं I अष्टांग योग का अर्थ यम नियम आसन प्राणायाम प्रत्याहार धारणा ध्यान व समाधि के माध्यम से अपने शरीर मन और आत्मा की शुद्धि करना है Iआज के युग में सामान्य मनुष्य के लिए योग को अपनाना अत्यंत कठिन कार्य है क्योंकि आज मनुष्य का जीवन एक मशीन की भांति बन कर रह गया है I योग मानवता का वह संग्रहित अमूल्य खज़ाना है जो तीन वस्तुओं से बना है - शरीर मन व आत्मा I इन अवस्थाओं का संतुलन ही योग का मार्ग दिखाता है Iपाठकों को एक ऐसी पुस्तक उपलब्ध कराने का प्रयास किया गया है जिसमें योग के समस्त भागों प्रभावों व बीमारियों की जानकारी एवं उपायों के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई हो I पुस्तक के हर पहलू को कई बार विचार करने के बाद ही शामिल किया गया है जिसमें लगभग 6 वर्षों का समय लगा I पुस्तक में जनमानस द्वारा दिये गये सुझावों को समाहित किया गया है जिससे सभी इसका सम्पूर्ण लाभ ले सकें I
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