योग एक आध्यात्मिक विषय है। जो मन एवं शरीर के बीच सामंजस्य स्थापित करने का काम है। यह स्वस्थ जीवन-यापन की एक बेहतरीन कला है। योग शब्द संस्कृत की युज धातु से बना है जिसका अर्थ जुड़ना या एकजुट होना है। योग से जुड़े ग्रंथों के अनुसार योग करने से मानव की चेतना ब्रह्मांड की चेतना से जुड़ जाती हैं। जो मन एवं शरीर को प्रकृति के मध्य में परिपूर्ण सामंजस्य बनाता है। आधुनिक विज्ञान के अनुसार ब्रह्मांड की हर वस्तु उसी परिणाम की अभिव्यक्ति मात्र है। जो भी इस अस्तित्व को महसूस कर लेता है। उसे योग में ● स्थित कहा जा सकता है और उसे योगी के रूप में पुकारा जा सकता है। जिसने यह अवस्था प्राप्त कर ली है। उसे ही मोक्ष कहा जाता है। भगवान शिव को योग का प्रथम गुरु या आदि गुरु भी कहा जाता है। इस पुस्तक में योग का संक्षिप्त विवरण बताया गया है। तत्पश्चात नख से शिख तक के अंगो को स्वस्थ्य रखने के लिये किये जाने वाले योग का सचित्र विस्तार से वर्णन किया गया है। इसके अतिरिक्त व्यक्ति के अस्वस्थ होने पर विभिन्न शारीरिक एवं मानसिक विकारों को दूर करने हेतु भिन्न प्रकार के योगासन का वर्णन भी किया गया है। पुस्तक में भाषा एवं शब्दों को सरल बनाया गया है। प्रत्येक जन मानस का जीवन मानसिक एवं शारीरिक रूप से स्वस्थ हो और वित प्रसन्न रहे ऐसा प्रयास लेखक द्वारा पुस्तक में किया गया है।
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