Yudhishthir Vijay Mahakavya Me Varnit Samaj

About The Book

संस्कृत वाङमय प्राचीनता, महनीयता एवं वसुधैव कुटुम्बकम की भावना के कारण विश्वविख्यात है। यह वांडमय संस्कृत ग्रन्थ रत्नों का अक्षय भण्डार है। अद्यापि अनेकशः ग्रन्थ ऐसे हैं, जो विद्वानों के द्वारा पूर्णतया उपेक्षित है, और बहुत से ऐसे ग्रन्थ हैं जिनकी समालोचना उनके बहुव्याख्यायित पक्षों पर ही की गयी है। ऐसे महाकाव्यों में संस्कृत वांडमय का विशालतम ग्रन्थ वैष्णव सम्प्रदाय का युधिष्ठिर विजय महाकाव्य है। जिनकी विद्वानों ने प्रायः साहित्यिक समीक्षा ही की है। इस महाकाव्य में निबद्ध दार्शनिक एवं सांस्कृतिक संचेतनाओं का सम्यक् समालोचनात्मक अध्ययन ही नहीं गया तथा साथ ही दार्शनिक एवं सांस्कृतिक तत्वों का विवेचन और महाकाव्य में वर्णित समाज का अध्ययन तो अद्यापि हुआ ही नहीं, जिससे वैष्णव सम्प्रदाय के विकास के साथ ही साथ पारस्परिक एकता का मूल मंत्र जन समक्ष आ सके। जिनकी आज नितान्त आवश्यकता है अध्ययन काल से ही लेखन कार्य की गरिमा एवं कार्य के विषय में उत्पन्न जिज्ञासा मुझे सदैव नित-नूतन कार्य की ओर प्रेरित करती रही है। संस्कृत साहित्य में कुछ नूतन तथ्यों को विद्वत्समक्ष प्रस्तुत करने की अभिलाषा ने मुझे इस कार्य की ओर प्रेरित किया ।
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