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Description
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व्यवस्था में परिवर्तन की आकांक्षा जब मन और विचार से नहीं बल्कि प्राण से उठती हो तो व्यक्ति अपना सब कुछ दांव पर लगाने पर आमादा हो जाता है। उसकी बाह्य प्रतिक्रिया व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन को उकसाती है और आंतरिक प्रतिक्रिया उसे संतत्व की ओर उन्मुख करती है। इस द्वंद्वात्मक स्थिति में कविताएँ विकल अंतरव्यथा की अध्यात्म व संतत्व की ओर उर्ध्वगामी यात्राएँ बन जाती हैं।